आजाद भारत के इतिहास में जनता पार्टी की सरकार क्षणभंगुर समय के लिए ही चली। लेकिन उन्होंने भी समृद्धि विरोधी मशीन को मजबूत बनाने में अपनी साझेदारी दी- संपत्ति के अधिकार को संविधान से मौलिक अधिकार के रूप से हटाकर।
इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री के रूप में वापस आयीं, उनके बाद 1984 में उनके पुत्र राजीव गांधी आए, जिन्हें इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भारतीय इतिहास में सबसे बड़ा जनादेश प्राप्त हुआ। उन्होंने कई बड़े वादे किए लेकिन छोटे-छोटे निर्णयों के कारण कोई कार्य पूरा नहीं कर पाए। संपत्ति सृजन के अवसरो को नष्ट करते हुए उस समय भी समृद्ध विरोधी मशीन आगे बढ़ती जा रही थी। 1991 में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव द्वारा समृद्ध विरोधी मशीन की वृद्धि को रोकने के लिए पहला महत्वपूर्ण प्रयास किया गया। पर उन्होंने भी एक साल बाद हार मान ली। उसके बाद समृद्धि विरोधी मशीन के लिए सब पहले जैसा हो गया।
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी छह साल के लिए सरकार में आए- जो समृद्धि विरोधी मशीन का खात्मा करने के लिए पयार्प्त समय था। कुछ हिस्सों का विखंडन जरूर किया गया, लेकिन एक बड़ा हिस्सा फिर भी बरकरार था। अगले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस मशीन को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके बाद लगातार 10 साल तक यह मशीन चलती रही। दुनिया के सामने इसे इस तरह से पेश किया गया कि इस मशीन का खात्मा कर दिया गया है लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं था, इसकी बस पैकजिंग बदल दी गयी।
फिर 2014 में नरेंद्र मोदी सत्ता में आए- अच्छे दिन के आकांक्षापूर्ण वादों के साथ। उन्होंने सारी सही बातें की और सरकार के कार्यशैली से नाराज राष्ट्र ने नरेंद्र मोदी को भारी संख्या में मतदान दिया। 16 मई 2014 को राष्ट्र को बड़ी आशा थी, क्योंकि 30 साल में पहली बार किसी प्रधानमंत्री को ऐसा मजबूत जनादेश प्राप्त हुआ था। अच्छे दिन के वादे समृद्ध विरोधी मशीन के खात्में पर निर्भर था।
समृद्धि विरोधी मशीन को तोड़ने और राष्ट्र को एक नए पथ पर लाने के लिए नयी सोच व नयी प्रतिभा की आवश्यकता थी। नयी प्रतिभा बदलाव नहीं थी और ना ही उसे होना था। यदि इसमें कोई संदेह था भी तो बजट के कुछ बयानों से यह स्पष्ट हो गया कि समृद्धि विरोधी मशीन का खात्मा करने के बजाय ये अब यह नए प्रबंधन के अधीन थी। शासक बदल गए थे, लेकिन नियम नहीं।