भारत के कई राज्यों में प्लास्टिक पर पाबंदी लगी हुई है। रवांडा और स्वीडन जैसे देशों ने प्लास्टिक पर प्रतिबंध से कई फायदे भी हासिल किए हैं।
महाराष्ट्र में पहले ही प्लास्टिक पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने के लिए तैयारी हो गई थी। पॉलीथीन बैग, विशिष्ट प्लास्टिक शीट, थर्माकोल इत्यादि कुछ प्रमुख प्रतिबंधित चीजों में से एक थे।
उल्लंघन करने वालों पर 5,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। हालांकि कुछ वस्तुओं को इस पाबंदी से मुक्त रखा गया था, जैसे- दूध की थैलियां, प्रसंस्कृत भोजन की पैकिंग के लिए, डस्टबिन लाइनर या पेट बोतलें। हालांकि, अग्रिम सूचना मिलने तक प्रतिबंध को 3 महीने तक के लिए स्थगित कर दिया गया है।
वैसे यह पहली बार भी नहीं था जब हम पर प्लास्टिक की पाबंदी लगाई गई हो। मुंबई में साल 2005 में आई बाढ़ के बाद 50 माइक्रॉन से नीचे के प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। लेकिन इससे कोई फायदा नहीं हुआ।
वास्तव में, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड 2016 की एक रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि अधिकांश भारतीय राज्यों ने 2011 के प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियमों को लागू नहीं किया है, जिसमें अपशिष्ट को अलग करने और अपशिष्ट का निपटान अनिवार्य है।
हम कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं कि इस तरह का प्रतिबंध प्रभावशाली है?
प्लास्टिक प्रतिबंध के पूरे उन्माद में मुझे अपने दोस्त द्वारा सुनाई गई एक घटना की याद आ गई है। उसकी रवांडा यात्रा के समय किगाली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर तलाशी के दौरान उसके बैग पूरी तरह से चेक किए गए थे- नशीले पदार्थों या सोने की तस्करी के लिए नहीं बल्कि प्लास्टिक के लिए।
हवाईअड्डे में लोगों को याद दिलाने के लिए संकेत दिए गए हैं कि वे एक प्लास्टिक मुक्त देश में प्रवेश करने वाले हैं और पाए गए किसी भी प्लास्टिक को जब्त कर लिया जाएगा।
हां तो, रवांडा, जो अभी भी नरसंहार से उबर रहा है, उसकी विकास योजना में पर्यावरणीय मुद्दे सबसे अहम हैं। रवांडा ने साल 2008 में ही प्लास्टिक बैग प्रतिबंध को कड़ाई से लागू कर दिया था।
वहां अधिकारियों ने निर्माताओं को प्लास्टिक बैग के व्यवसाय को पेपर बैग के व्यवसाय में बदलने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने प्लास्टिक रीसाइक्लिंग करने के लिए वाले निर्माताओं को टैक्स में छूट भी दी। यही नहीं, पर्यावरण हितैषी बैगों के के लिए बाजार सुनिश्चित करने सरकारी नीति भी बनाई।
[caption id="attachment_4169" align="aligncenter" width="350"] www.noted.co.nz[/caption]यहां तक कि रवांडा का संविधान constition of Rwanda भी यह मान्यता देता है कि “प्रत्येक नागरिक एक स्वस्थ और संतोषप्रद वातावरण का अधिकारी है।”
परंतु रवांडा में प्लास्टिक का काला बाजार भी मौजूद है; प्लास्टिक के इस काले कारोबार में तस्कर घात लगाए बैठे रहते हैं।
वहां प्लास्टिक को नशीले पदार्थों की तरह बुरा माना जाता है जबकि कथित तथ्य यह है कि लोगों को इसकी तस्करी करना पड़ता है। इस पर ताज्जुब होना चाहिए कि हम भी ऐसा क्यों नहीं कर सकते?
ये तस्कर जुर्माने या जेल के भागी होते हैं अथवा कभी-कभी उन्हें सार्वजनिक रूप से माफी कबूल करने के लिए मजबूर किया जाता है। इस कानून का उल्लंघन करने पर मालिक के हस्ताक्षर वाले माफीनामे के साथ दुकानें बंद कर दी जाती हैं।
दिलचस्प बात यह है कि इस प्रतिबंध का असर यह है कि जुर्माना भरने से बचने का लिए दूसरे देशों के यात्री अक्सर अपने यात्रा सलाहकार से रवांडा के प्लास्टिक प्रतिबंध के बारे में सवाल पूछ लेते हैं- https://www.tripadvisor.in/ShowTopic-g293828-i9987-k3672768-Plastic_bags_ban_what_types_will_our_luggage_be_searched-Rwanda.html
प्रतिबंध के बजाय रीसायकलिंग पर जोर
एक और देश है- स्वीडन, जिससे हम पर्यावरण की सीख ले सकते हैं।
मजेदार तथ्य– स्वीडन अपने कचरे को इतना ज्यादा रीसायकल करता है कि यह कचरा-मुक्त हो गया और इसे 2014 में कचरा आयात करना पड़ा।
यही कारण है कि- स्वीडन ने रवांडा की तुलना में थोड़ा अलग रास्ता अपनाया। उसकी नीति थी- ‘प्लास्टिक प्रतिबंध नहीं, प्लास्टिक रीसाइक्लिंग अधिक’
स्वीडन में यह प्रणाली इतनी मजबूत है कि घरेलू कचरे का एक प्रतिशत से भी कम कचरा जमीन में डंप करने में जाता है।
स्वीडन में रीसाइक्लिंग-संस्कृति को बढ़ावा देने वाली दो विशेषताएं:
1.समेकित रीसाइक्लिंग नीति कचरे को जलाने की सिफारिश करती है, जिससे स्वीडन की सर्दी में घरों को गर्म करने के लिए ऊर्जा तैयार होती है। ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए जीवाश्म ईंधन के रूप में कचरे का उपयोग किया जाता है।
2.नियम के अनुसार रीसाइक्लिंग स्टेशन आवासीय क्षेत्रों से 300 मीटर के भीतर होते हैं। नतीजतन, अधिकांश निवासी अपने घरों में ही कचरे को अलग करते हैं और इसे घरों के बाहर रखे विशेष कंटेनरों में भरते हैं या स्वयं ही कचरे को रीसाइक्लिंग स्टेशन पर ले जाते हैं।
इसके अलावा, भूकंप संयंत्रों में ऊर्जा पैदा करने के लिए जलाया जाने वाला घरेलू अपशिष्ट में गैर-विषाक्त गैसों का 99.9 प्रतिशत होता है। अपशिष्ट सबसे सस्ता ईंधन है और स्वीडन ने अपशिष्ट प्रबंधन की एक कुशल और लाभप्रद प्रणाली विकसित की है।
राज्य में प्लास्टिक-पाबंदी हालांकि प्रभावी है, पर यह सही मॉडल नहीं हैं। यह हमें दिखाता है कि प्लास्टिक-मुक्त राज्य के लक्ष्य को पाने में मात्र प्रतिबंध लगाने से सहायता नहीं मिलती। नियमों को लागू करने, उल्लंघन करने वालों को पकड़ने में सरकार को सक्षम होना चाहिए। रीसायकल करने के लिए लोगों को प्रोत्साहन व विकल्प देना भी शामिल है। सरकार को रीसायक्लिंग की सुविधाएं भी मुहैया करानी चाहिए।
ऐसे देश में जहां आधारभूत नियमों को भी लागू नहीं किया जा सकता है, वहां इसे लागू करने के लिए राज्य की क्षमता का आकलन किए बिना लोगों के सिर पर प्लास्टिक प्रतिबंध को लाद देने से कोई हल निकलने वाला नहीं।