आज गुरु पूर्णिमा है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा महर्षि वेद व्यास की जयंती है। अतः इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना पूरी की थी। तब देवताओं ने उनकी पूजा की थी। इसलिए तबसे इस दिन गुरु पूर्णिमा मनाई जाने लगी है।
‘गुरु’ दो शब्दों से बना है। ‘गु’ का अर्थ है- अंधकार या अज्ञान और ‘रु’ का अर्थ है- निरोधक, यानी जो ज्ञान के प्रकाश से अज्ञान को ज्ञान से मिटा दे वह गुरु है। इस तरह जो हमें ज्ञान दे, शिक्षा दे, हमारा मार्गदर्शन करे, जीवन को नयी दिशा दे, हमें उन्नति के पथ पर ले जाए- वही गुरु है।
गुरु चाहे तो अपने शिष्य को सफलता के शिखर पर बिठा दे, एक साधारण इंसान को महान बना दे, इतिहास में अमर कर दे। जिस तरह हमें एक सच्चे गुरु की आवश्यकता होती है उसी तरह गुरु की नजरें भी एक होनहार शिष्य ढूंढती रहती हैं जिसे वह तराशकर हीरा बना दे और शिष्य के साथ-साथ दुनिया गुरु को भी याद रखे। आज हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसे ही कुछ गुरु-शिष्यों की जोड़ी के बारे में जो आज एक-दूसरे का पर्याय बन चुके हैं-
सांदिपनी ऋषि-श्रीकृष्ण
कृष्ण गोकुल में गैया चराने वाले एक ग्वाले थे जिसे सांदिपनी ऋषि ने वेद-उपनिषदों का ज्ञान देकर एक युगपुरुष बना दिया। मथुरा में कंस का वध करने के पश्चात कृष्ण और बलराम को विद्याध्ययन के लिए उज्जैनी में सांदिपनी ऋषि के आश्रम में भेजा गया। यहां पर श्रीकृष्ण ने 64 दिनों में ही 64 कलाएं सीखीं। शायद ही दुनिया में ऐसे गुरु-शिष्य का दूसरा उदाहरण मिलेगा।
द्रोणाचार्य-अर्जुन
द्रोणाचार्य कौरवों और पांडवों के शिष्य थे। वे उन्हें अस्त्र-शस्त्र और युद्धकला का अभ्यास कराते थे। द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य अर्जुन थे। द्रोणाचार्य ने अर्जुन को विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाया। आज देश में खेलों के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए भारत सरकार खिलाड़ी को ‘अर्जुन पुरस्कार’ और उसके कोच को ‘द्रोणाचार्य पुरस्कार’ देती है।
चाणक्य-चंद्रगुप्त
मगध के राजा महानंद (घनानंद) से अपमानित चाणक्य ने अपनी शिखा खोलकर यह प्रतिज्ञा की थी कि जब तक वह नंदवंश का नाश नहीं कर देगा तब तक वह अपनी शिखा नहीं बांधेगा। चंद्रगुप्त के रूप में एक ऐसा होनहार शिष्य उन्हें मिला था जिसे उन्होंने युद्धकला में पारंगत कर अपने अपमान का बदला लिया। चंद्रगुप्त और चाणक्य ने अखंड भारत की स्थापना की।
अरस्तु-सिकंदर
अरस्तु की गिनती अपने समय के महान दार्शनिकों में होती है। वह सिकंदर के गुरु थे। अरस्तू को दर्शन, राजनीति, काव्य, आचारशास्त्र, शरीर रचना, दवाइयों, ज्योतिष की बेहतरीन जानकारी थी। अरस्तु की लिखी 400 किताबे बताई जाती हैं। अरस्तु और चाणक्य की कहानी एक जैसी ही है। दोनों ही विद्वानों ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए सम्राट पैदा किए। सिकंदर के मन में ‘विश्व विजेता’ बनने का विचार अरस्तु ने ही डाला था। अपने गुरु के सपनों को पूरा करने पर आज सिकंदर इतिहास में अमर हो गया है।
हेनरी मुरे-न्यूटन
न्यूटन जब पैदा हुए तब उनका वजन इतना कम था कि उनके जिंदा होने की उम्मीद ही नहीं थी। मगर चमत्कारिक रूप से वे बच गए। उनका पूरा बचपन अकेले में बीता। कॉलेज में भी पढ़ाई में कमजोर थे जिस कारण शिक्षकों से डांट पड़ती रहती थी। यहां भी वे अकेले थे। ऐसे में दर्शनशास्त्र के शिक्षक हेनरी मुरे ने उनका उत्साह बढ़ाया और बाइबिल पढ़ने की सलाह दी। हेनरी मुरे के सानिध्य में न्यूयन का आत्मविश्वास बढ़ा और आगे चल कर उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में कई खोजें की जिसके लिए आधुनिक सभ्यता हमेशा उनकी एहसानमंद रहेगी।
रामदास समर्थ-शिवाजी
स्वामी रामदास समर्थ संन्यासी थे। अपनी तीर्थ यात्रा के दौरान उन्होंने जनता की जो दुर्दशा देखी उससे उनका हृदय संतप्त हो उठा। जनता को आततायी शासकों के अत्याचारों से जनता को मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने शिवाजी को चुना और उन्हें हिंदवी स्वराज्य की स्थापना के लिए प्रेरित किया। अपने गुरु के मार्गदर्शन में शिवाजी एक छत्रप से छत्रपति शिवाजी महाराज बन गए।
रामकृष्ण परमहंस-स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद ने भारत के पुनरुत्थान और विश्व के उद्धार के लिए जो कार्य किया वह अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से मिले ज्ञान के आधार पर ही। रामकृष्ण परमहंस को एक ऐसा शिष्य मिला जिसने गुलाम भारत को ‘विश्व गुरु’ का दर्जा दिलाया।
दादाभाई नौरोजी-गांधीजी
‘ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ़ इंडिया’ के नाम से जाने जानेवाले दादाभाई नौरोजी को महात्मा गांधी जी का राजनैतिक गुरु माना जाता है। कांग्रेस के संस्थापकों में से वे एक थे। दादाभाई नौरोजी की ही प्रेरणा से गांधी जी भारत आकर देश की आज़ादी के लिए राजनीति में सक्रिय हुए। वे बाल गंगाधर तिलक और गोपाल कृष्ण गोखले के भी सलाहकार थे।
नीम करौली बाबा-मार्क जुकरबर्ग
इंसान जब परेशान होता है तो अपनी परेशानी का हल ढूंढने के लिए वह दुनिया के किसी भी कोने में जा सकता है। सोशल साइट ‘फेसबुक’ के निर्माता मार्क जुकरबर्ग एक बार असफलता में घिर गए थे तो ‘एप्पल’ के संस्थापक स्टीव जॉब ने उन्हें भारत के एक आश्रम में जाने की सलाह दी। नैनीताल जिले के कैंची धाम स्थित बाबा नीम करौली (नीब करोरी) में आकर अध्यात्म की शरण में अध्यात्मिक शांति के बाद उन्हें फेसबुक को नए मुकाम पर ले जाने की ऊर्जा मिली। मार्क जुकरबर्ग आज ऐसे बाबा नीम करौली को अपना अध्यात्मिक मानते हैं जो जीवित भी नहीं हैं।
रमाकांत आचरेकर-सचिन तेंदुलकर
क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर को क्रिकेटप्रेमी क्रिकेट का भगवान मानते हैं। सचिन तेंदुलकर को तराशने वाले गुरु का नाम है- रमाकांत आचरेकर। वह दादर, मुंबई के शिवाजी पार्क में युवा क्रिकेटरों को प्रशिक्षित के लिए सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं। सचिन तेंदुलकर ने उन्हीं से चौके-छक्के लगाने के गुर सीखे हैं। क्रिकेट की दुनिया में दोनों एक-दूसरे के पर्याय हैं।
… तो आज गुरु पूर्णिमा के अवसर पर हम सभी गुरुओं को नमन करते हैं!