आर्थिक और सामाजिक आज़ादी की पुरज़ोर वकालत करने वाले फ्रांसीसी अर्थशास्त्री फ्रेडरिक बास्टिएट के बारे में और उनके लिखे चुनिंदा लेख हम पढ़ेंगे ‘नयी दिशा’ में। आइए, आज सबसे पहले पढ़ते हैं: फ्रेडरिक बास्टिएट के बारे में-
फ्रेडरिक बास्टिएट एक महान फ्रांसीसी राजनीतिक विचारक, उदारवादी अर्थशास्त्री और दार्शनिक थे। उनका जन्म सन 1801 में फ्रांस के दक्षिण पश्चिमी बंदरगाह बेयोन में हुआ था और सन 1848 में वे फ्रांसीसी संसद के सदस्य भी थे। 24 दिसंबर 1850 को तपेदिक की बीमारी से रोम में उनका निधन हुआ था। बास्टिएट आर्थिक विचारक के तौर पर समसामयिक विषयों पर लिखने वाले एक ‘जीनियस’ थे। जोसेफ शूम्पटर तो उन्हें ‘इतिहास का सबसे मेधावी आर्थिक पत्रकार’ कहा है। पेरिस से निकलने वाले ‘ल जर्नाल दे इकोनॉमिस्ट’ (Le Journal des Economistes) के वे संपादक भी रहे। उन्होंने अनिगनत निबंध या पैम्फ्लेट्स भी लिखे। इनमें से ‘द लॉ’ और ‘व्हाट इज सीन एंड व्हाट इज नॉट सीन’ काफी मशहूर हैं। बास्टिएट के तमाम लेखों की भाषा फ्रेंच है और बाद में उनका अनुवाद अंग्रेजी में किया गया। कई भाषाओं के जानकार बास्टिएट ने समूचे यूरोप के राजनीतिक अर्थशास्त्र का गहराई से अध्ययन किया था। सन 1844 में बास्टिएट को एक अर्थशास्त्री के रूप में ख्याति मिली। बास्टिएट की कृतियां अर्थशास्त्र व राजनीतिक अर्थव्यवस्था से संबंधित हैं और वे प्रबल तर्क व तार्किक बुद्धि पर आधारित हैं।
बास्टिएट अत्यंत प्रतिभाशाली थे। उनकी कलम दर्शन, इतिहास, राजनीति, धर्म, यात्रा, काव्य, राजनीतिक अर्थव्यवस्था तथा आत्मलेखन पर चली है। बास्टिएट की रचनाओं में निबंध संग्रह ‘इकोनॉमिक सोफ़िज्म्स’(1845) में प्रकाशित निबंध ‘रोशनी करने वालों की याचिका’ (Candle makers’ Petition) बहुत ही मशहूर है। ‘नयी दिशा’ में आगे इस निबंध पर भी चर्चा की जाएगी। ‘इकोनॉमिक हार्मोनीज़’ में उन्होंने राजनीतिक अर्थशास्त्र पर लिखा है। उनकी अन्य कृतियों में कोबडेन एंड लीग (1845), कैपिटल एंड रेंट (1849) और ‘द लॉ’ शामिल हैं। ‘द लॉ’ को बास्टिएट की सर्वश्रेष्ठ कृति बताई जाती है। इसमें बड़े ही तार्किक ढंग से यह बताया गया है कि किस प्रकार विकास (आर्थिक) व सम्यक कानून द्वारा मुक्त समाज का सृजन किया जा सकता है।
एक राजनीतिज्ञ के तौर पर, वे सरकार के छोटे आकार के पक्षधर थे। और जनता की जेब पर भारी पड़ते अनवरत सरकारी खर्चों के खिलाफ लड़ते थे। बास्टिएट फ्रांस के अर्थशास्त्रियों की उदारवादी या लेसी-फेयर (laissez-faire एक ऐसा मत जिसके अनुसार सरकार को व्यावसायिक गतिविधियों में दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए) के समर्थक थे। बास्टिएट ने मुक्त व्यापार व सरकारी हस्तक्षेप से रहित अर्थव्यवस्था के विचार को प्रेरित किया, जिससे दुनिया के किसी कोने में उत्पादित हो रहे कम लागत व नयी तकनीक से बने उत्पादों का फायदा पूरी दुनिया को मिल सके। राजनीतिक अर्थशास्त्र पर प्रबंधन में उन्होंने समझाया कि सामाजिक जगत की एक कुदरती सामंजस्य भरी अर्थव्यवस्था है। एक ऐसी व्यवस्था जो सीमित संसाधनों से असीमित मांगों को पूरा करने के इंसानी प्रयास की देन होती है। वे मानते थे कि इस कारण सभी के लिए भौतिक सुख-शांति की दिशा में संतुलित प्रगति होती है। उन्होंने लिखा कि इस आजादी और उससे जुड़ी बातों जैसे- जायदाद, प्रतिस्पर्धा की राह में हस्तक्षेप से न केवल गरीबी बढ़ती है बल्कि लोग दमन का शिकार भी होते हैं। ऐसा इसलिए कि हस्तक्षेप से लोगों का सृजन का वह काम प्रभावित होता है, जिसमें वे जुटने वाले थे। इस तरह सृजन के फल भुला दिए जाते हैं और हस्तक्षेप के दौरान वे ही ‘न देखी जाने वाली’ बात बन जाते हैं।
बास्टिएट एक लेखक के साथ-साथ एक सामाजिक कार्यकर्ता की तरह भी थे। उन्होंने उस काल में उपनिवेशवाद के विस्तार को रोकने की वकालत की थी और गुलामी प्रथा की भी मुखर आलोचना की थी। वे व्यक्तिगत आज़ादी और जवाबदेही की वकालत करते थे। वे प्रतिभा, कुशलता और समानता के अग्रदूत थे। वह राजनीति में महिलाओं की ज्यादा भागीदारी के भी पक्षधर थे।
फ्रेडिरक बास्टिएट को हमेशा आज़ादी के एक ऐसे समर्थक के तौर पर याद किया जाएगा, जिनका लेखन आज भी सामयिक है। वे मानते थे कि अर्थशास्त्र दो तथ्यों पर आधारित है- असीमित मांग और दुर्लभ संसाधन। वे एक ऐसे मुक्त समाज का सपना देखते थे जिसमें लोगों को अपनी संपत्ति-जायदाद का अपनी इच्छा के मुताबिक इस्तेमाल का अधिकार हो। केवल ऐसा समाज ही लोगों को अपने विविधता भरे लक्ष्यों और हितों को व्यापार के ज़रिए हासिल करने का मौका दे सकता है।
आगे हम ‘नयी दिशा’ में फ्रेडरिक बास्टिएट के कुछ महत्वपूर्ण लेखों का हिंदी अनुवाद पढ़ेंगे।