पिछले ब्लॉग ‘आज़ादी और समानता की वकालत करने वाले उदारवादी अर्थशास्त्री- फ्रेडरिक बास्टिएट’ में हमने फ्रांसीसी अर्थशास्त्री के बारे में पढ़ा। इस ब्लॉग में हम उनके निबंध 'दैट विच इज सीन एंड विच इज नॉट सीन' का परिचय पढ़ेंगे जिसमें फ्रेडरिक बास्टिएट पाठकों को एक अच्छे अर्थशास्त्री बनने के गुर सिखाते हैं।
मुख्य लेख पढ़ने से पहले इसके बारे में इस निबंध के बारे में थोड़ी जानकारी और ले लेते हैं जिससे समझने में आसानी होगी।
फ्रेडरिक बास्टिएट ने अपने निबंधों (पैम्फ्लेट्स) में आर्थिक नीतियों से संबंधित अपने विचार प्रकट किए हैं जिनमें वे समाज के लिए आर्थिक आज़ादी की मांग करते हैं और सरकार की गलत नीतियों का खुलासा भी करते थे। सन 1850 में प्रकाशित उनका निबंध ‘दैट विच इज़ सीन एंड विच इज़ नॉट सीन’ काफी मशहूर है। इसके बारे में अर्थशास्त्री हैनरी हेजिलट ने अपनी किताब ‘इकोनोमिक्स इन वन लेसन’ में ‘दैट विच इज़ सीन एंड विच इज़ नॉट सीन’ के बारे में लिखा है, ‘इसे बास्टिएट के पैम्फ्लेट्स में उल्लेखित सोच का आधुनिकीकरण, विस्तार और सामान्यीकरण कहा जा सकता है।’
फ्रेडरिक बास्टिएट के निबंधों का फ्रेंच से अंग्रेजी में अनुवाद करने वाले एफ.ए. हायक ने बास्टिएट को एक जीनियस की संज्ञा दी है। वे कहते हैं, “निबंध अपने विचार ‘दैट विच इज़ सीन एंड विच इज़ नॉट सीन’ का बहुचर्चित शीर्षक ही इसे साबित कर देता है। किसी ने भी एक तार्किक आर्थिक नीति के मूल में रची-बसी दिक्कतों को इस तरह एक पंक्ति में इतनी सटीकता के साथ नहीं सहेजा था और मैं कहना चाहूंगा कि आर्थिक आज़ादी के लिए भी। समूची सोच को इतने कम शब्दों में समेटने की क्षमता के कारण ही मैंने पहली ही पंक्ति में उनका जिक्र ‘जीनियस’ के तौर पर किया। यह वाकई ऐसा लेखन है जिसके इर्द-गिर्द उदार आर्थिक नीति का ताना-बाना बुना जा सकता है। अपने वक्त की तत्कालीन भ्रांतियों के विरोध में बास्टिएट इस सोच का बार-बार खुलासा करते हैं। उनके विचार आज आधुनिक आवरण में भले छिप गए हैं, लेकिन उनका मूल बास्टिएट के काल से आज तक नहीं बदला है। आम भाषा में कहा जाए तो अगर हम आर्थिक नीति के उपायों को उनके तात्कालिक और निकट भविष्य के परिणामों के लिहाज से ही देखेंगे तो हम न केवल कुछ व्यावहारिक हासिल करने से वंचित रह जाएंगे बल्कि हम आज़ादी पर अंकुश लगाएंगे और हमारे उपायों से फायदे के बजाय नुकसान ही ज्यादा होगा। आज़ादी इसलिए जरूरी है कि हर एक व्यक्ति को अपनी परिस्थितियों और जरूरतों के लिहाज से अपनी मर्जी से काम करने का मौका मिले। इसलिए हम नहीं जानते कि उनकी आज़ादी पर अंकुश लगाकर हम उन्हें क्या हासिल करने से रोक रहे हैं। हर तरह का प्रतिबंध इसी तरह का एक अंकुश ही होता है।
आइए पढ़ते हैं मुख्य लेख जो फ्रेडरिक बास्टिएट के निबंध का अनुवाद है-
क्या देखा जाता है और क्या नहीं देखा जाता है-
परिचय
अर्थव्यवस्था विभाग में, एक कृत्य, एक आदत, एक संस्थान, एक कानून, न केवल प्रभाव को जन्म देता है, बल्कि प्रभावों की एक श्रृंखला को जन्म देता है। इन प्रभावों में से केवल पहला ही तत्काल होता है; यह अपने कारण के साथ सामने आता है– यह दिखाई देता है। अन्य प्रभाव इसके बाद ही आते हैं, वे दिखाई नहीं देते। अगर हम उनको पहले ही भांप लेते हैं तो यह हमारे लिए अच्छा होता है।
एक कमजोर अर्थशास्त्री और अच्छे अर्थशास्त्री के बीच यह अंतर होता है कि– एक केवल दिखाई देने वाले प्रभाव को महत्व देता है; जबकि दूसरा दोनों प्रभावों को ध्यान में रखता है– जो दिखाई देता है और दूसरे न दिखाई देने वाले प्रभाव को भी, जिसे पहले से ही भांप लेना जरूरी है। अब यह अंतर बहुत बड़ा है, क्योंकि ऐसा हमेशा ही होता है कि जब तत्कालिक प्रभाव अनुकूल होता है, तो अंतिम प्रभाव नुकसानदेह होते हैं या विपरीत होते हैं। इसलिए यह इस प्रकार है कि कमजोर अर्थशास्त्री वर्तमान में एक छोटा फायदा उठा लेता है मगर बाद में जिसके पीछे एक बड़ी मुसीबत चली आती है, जबकि आदर्श अर्थशास्त्री वर्तमान में छोटे नुकसान के जोखिम पर भविष्य में होने वाला फायदा देखता है।
वास्तव में, यह बात स्वास्थ्य, कला और नैतिकता में भी लागू होती है। आदत एक ऐसा फल है जिसका स्वाद पहले मीठा लगता है मगर उसका परिणाम अक्सर बहुत कड़वा होता है। व्यसन, आलस्य, फिजूलखर्ची का ही उदाहरण ले लीजिए। इसलिए जब कोई आदमी किसी दिखाई देने वाले प्रभाव के वशीभूत हो जाता है और उसने अब तक दिखाई न देने वाले प्रभावों से कुछ नहीं सीखा है तो वह जानबूझ कर अपनी मर्जी से घातक आदतों को बुलावा देता है।
यह मानवजाति के विकास की गंभीर पीड़ादायक अवस्था की व्याख्या करता है। पालने में सोया बच्चा अपने जन्म के समय से ही अज्ञान से घिरा रहता है, इसलिए उसकी क्रिया उसके अपने पहले परिणाम को निर्धारित करती है। यह उसके पहले चरण में केवल एक बार ही देख सकते हैं। यह केवल लंबे समय बाद होता है जब वह दूसरों पर ध्यान देना सीखता है। उसे इस सबक को दो बहुत अलग शिक्षकों– अनुभव और दूरदर्शिता से सीखना होता है।
‘अनुभव’ नाम का शिक्षक प्रभावशाली ढंग से सिखाता है, लेकिन निर्दयता से। यह हमें किसी क्रिया के सभी प्रभावों से परिचित कराता है, जिससे हम उन्हें महसूस करें; और अगर हमने खुद को जला लिया है, तो हम यह सीखे बिना नहीं रहते कि आग जलाती है। यानी आग का अनुभव लेने के लिए हमें जलना पड़ता है। अगर संभव हो तो इस कठोर शिक्षक के एवज में मैं अधिक विनम्र शिक्षक पसंद करूंगा यानी ‘दूरदर्शिता’ को। इसके लिए मैं दिखाई देने वाले और न दिखाई देने वाले प्रभावों को एक–दूसरे के विपरीत रखकर कुछ आर्थिक घटनाओं के परिणामों की जांच–पड़ताल करूंगा।
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अगले ब्लॉग में हम पढ़ेंगे- द ब्रोकन विंडो (टूटी हुई खिड़की)