टूटी हुई खिड़की: विनाश से आम आदमी का भला नहीं होता!

पिछले ब्लॉग में आपने फ्रेडरिक बास्टिएट के निबंध 'दैट विच इज़ सीन एंड विच इज़ नॉट सीन' का परिचय पढ़ा जिसमें बास्टिएट पाठकों को एक अच्छे अर्थशास्त्री बनने के गुर सिखाते हैं। आगे वे यह बताते हैं कि नुकसान से किसी का भला नहीं होता।

‘नयी दिशा’ में हमारे पाठक ‘आज़ादी और समानता की वकालत करने वाले उदारवादी फ्रांसीसी अर्थशास्त्री- फ्रेडरिक बास्टिएट’ के बारे में पढ़ रहे हैं। ‘परिचय’ पढ़ने के बाद इस ब्लॉग में देखेंगे कि किस तरह बास्टिएट ने उपभोक्ताओं यानी हमारे जैसे सामान्य लोगों की पैरवी की है। उन्होंने अपने समकालीन अर्थशास्त्रियों को उपभोक्ता के नुकसान के बजाए निर्माताओं का पक्ष लेने पर जम कर खरी-खोटी सुनाई है।

फ्रेडरिक बास्टिएट ने अपने निबंधों (पैम्फ्लेट्स) में आर्थिक नीतियों से संबंधित अपने विचार प्रकट किए हैं जिनमें वे समाज के लिए आर्थिक आज़ादी की मांग करते हैं और सरकार की गलत नीतियों का खुलासा  भी करते थे। सन 1850 में प्रकाशित उनका निबंध ‘दैट विच इज़ सीन एंड विच इज़ नॉट सीन’ काफी मशहूर है।  इसमें बास्टिएट ने आम लोगों का पक्ष लेते हुए न्यायसंगत बात की है जो उन्हें उदारवादी और दार्शनिक अर्थशास्त्री के रूप में दिखाती है। उन्होंने अर्थशास्त्र के तथाकथित गूढ़ नीतियों को इतनी सरलता से समझाया है कि आम आदमी भी इन चालाकियों को समझ सके। ‘टूटी हुई खिड़की’ (द ब्रोकन विंडो) के जरिए बास्टिएट उस व्यक्ति के आर्थिक नुकसान की समीक्षा करते हैं जिसकी खिड़की टूट गई है। इस टूटी हुई खिड़की में सभी अर्थशास्त्रियों को कांच उद्योग का फायदा दिखाई देता है मगर आम जनता से सहानुभूति रखने वाले बास्टिएट को उस व्यक्ति का नुकसान दिखाई देता है, जिसे किसी ने नहीं देखा। अब उस व्यक्ति को अपने दूसरे किसी काम के लिए रखे गए पैसों को खिड़की बनवाने में खर्च करना पड़ रहा है। इस तरह वह व्यक्ति गरीबी में घिर जाता है। ठीक ऐसा कई बार हमारे साथ भी होता है। पैसों की तंगी के चलते हम अपनी जरूरतें पूरी नहीं कर पाते। इस तरह बास्टिएट समझाना चाहते हैं कि- विनाश से आम आदमी का भला नहीं होता।

आइए पढ़ते हैं मुख्य लेख जो फ्रेडरिक बास्टिएट  के निबंध का अनुवाद है-

क्या देखा जाता है और क्या नहीं देखा जाता है-

टूटी हुई खिड़की (द ब्रोकन विंडो)

क्या आपने इसके पहले कभी भले दुकानदार जेम्स बी. को गुस्से में देखा था, जब उनके बिगड़ैल बेटे ने खिड़की का कांच तोड़ दिया था? अगर आप उस घटना के समय होते तो आपने देखा होता कि वहां मौजूद सभी तमाशबीन, जो गिनती में 30 के आस-पास रहे होंगे, उस बदनसीब मकान मालिक को जैसे दिलासा देना चाह रहे थे,- “दुष्ट हवा कभी किसी का भला करती है क्या? हर किसी को जीवन-यापन तो करना ही है। अगर कोई कभी-भी कोई खिड़की न तोड़े तो फिर बेचारे कांच का काम करने वालों (ग्लेज़ियर) का क्या होगा?’

अब सांत्वना के इस रूप में एक संपूर्ण सिद्धांत है, जो इस आसान-से केस में अच्छी तरह दिखाई देगाइसमें ठीक वे सभी चीजें हैं जो दुर्भाग्यवश हमारे अधिकांश आर्थिक संस्थानों को नियंत्रित करती हैं। मान लीजिए कि इस नुकसान की मरम्मत पर छह फ्रैंक का खर्च आता है और आप कहते हैं कि दुर्घटना से कांच के व्यापार में छह फ़्रैंक का इजाफा होता है- यह उस व्यापार को छह फ्रैंक की रकम की बढ़ोतरी कराती है- तो मैं आपसे सहमत हूं; मेरे पास इसके खिलाफ कहने के लिए शब्द नहीं हैं; आपका तर्क न्यायसंगत है। कांच वाला (ग्लेज़ियर) आता है, अपना काम करता है, छह फ्रैंक कमाता है, अपने हाथों को साफ करता है और मन-ही-मन शरारती बच्चे को आशीर्वाद देता है। यह सब वह है जो- देखा जाता है।

लेकिन, दूसरी तरफ, आप इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं, जैसा कि खिड़कियों का टूटना अच्छी बात है, क्योंकि यह पैसे के चलन को बढ़ावा देता है। आम तौर पर इसका परिणाम यह होगा कि उद्योग का प्रोत्साहन मिलेगा। आप मुझे चीखकर विरोध करने के लिए मजबूर करेंगे, “रुक जाइए! आपका सिद्धांत- क्या देखा जाता है, तक ही सीमित है। इसमें- क्या नहीं देखा जाता, का कोई जिक्र नहीं है।”

यह नहीं देखा जाता कि हमारे दुकानदार  जेम्स बी. को टूटी हुई खिड़की की मरम्मत के लिए छह फ्रैंक खर्च किए हैं, इसलिए अब वह उन छह फ्रैंकों को किसी अन्य काम के लिए खर्च नहीं कर पाएगा। यह नहीं देखा जाता है कि अगर उसे खिड़की का कांच नहीं बदलना पड़ता तो शायद वह अपने पुराने जूते बदलता या फिर अपनी लाइब्रेरी के लिए एक और किताब खरीदता। संक्षेप में उसने अपने छह फ्रैंक ऐसे किसी काम में इस्तेमाल किए होते,  जिनके लिए अब इस हादसे के बाद उसके पास पैसे नहीं हैं।

आइए, इस परिस्थिति से प्रभावित होने के कारण अब उद्योग पर एक सर्वसामान्य नजर डालें। खिड़की का कांच टूट जाने के कारण कांच उद्योग को छह फ्रैंक का प्रोत्साहन मिला, यह वह है जो देखा जाता है। अगर खिड़की का कांच नहीं टूटता तो जूता उद्योग (या किसी अन्य) को छह फ्रैंक का प्रोत्साहन मिल गया होता, यह वह है जो देखा नहीं जाता। और यदि जो देखा नहीं जाता है, उसे विचारार्थ रखा जाता है, क्योंकि यह एक नकारात्मक तथ्य है, इसी के साथ ही जो देखा जाता है, जिसे एक सकारात्मक तथ्य मानकर सोचें, तो यह बात साफ हो जाएगी कि न तो उद्योग को आमतौर पर कोई फायदा हुआ और न ही राष्ट्रीय रोजगार के कुल योग पर ही इसका कोई असर हुआ, चाहे खिड़की का कांच टूटे या न टूटे।

अब जेम्स बी. पर विचार करते हैं। पूर्व परिकल्पना में, खिड़की टूट जाने पर वह छह फ्रैंक खर्च करता है, और खिड़की का आनंद उसे खिड़की टूटने से पहले जितना ही मिलता है न तो उससे कम, न अधिक। दूसरे में, जहां हम मानते हैं कि खिड़की टूटी नहीं है, तो वह जूते पर छह फ्रैंक खर्च करता और इस तरह वह एक जोड़ी नए जूते और खिड़की दोनों का आनंद एक साथ ले सकता होता। अब, जैसा कि जेम्स बी. समाज का ही एक हिस्सा हैं तो हमें इस निष्कर्ष पर आना चाहिए कि कुल मिलाकर इसमें लगी मेहनत और इसके आनंद का अनुमान लगाते हुए, टूटी हुई खिड़की का महत्व खो गया। जब हम इस अप्रत्याशित निष्कर्ष पर पहुंचते हैं: “समाज में उन चीजों का मूल्य घट जाता है जिन्हें बेवजह नुकसान पहुंचाया गया हो” और हमें इस सूत्रवाक्य को अवश्य स्वीकार करना चाहिए जोकि व्यापार संरक्षणवादियों के रोंगटे खड़े कर देगा- तोड़ना, खराब करना, बर्बाद करना राष्ट्रीय रोजगार को बढ़ावा देना नहीं है। संक्षेप में कहें- 

विनाश लाभदायक नहीं होता है।”

आप क्या कहेंगे? हां, मॉन्सीर इंडस्ट्रियल- आप क्या कहेंगे, एम. एफ. चैनंस [ऑगस्ते, विकोमते डी सेंटशेमेंस (1777-1861), व्यापार में पुनर्निर्माण, संरक्षण और समर्थन के तहत डिप्टी और काउंसलर। उनके ‘बाधाओं’ पर रूख’ का बास्टिएट द्वारा अपनी रचना नॉवेल ‘एसे सूर ला रिचेस देस नेसंस’(1824) में जिक्र। इसे बाद (1824) में उनके ही ‘ट्रेट डी इकोनॉमी पोलितिक’ में शामिल किया गया था।] के चेले, जिन्होंने यह हिसाब लगा लिया था कि अगर पेरिस जलता है तो फिर से बनने वाले घरों से कितना व्यापार हासिल होगा?

मैं इस चतुराई भरे हिसाब के विरोध के लिए माफी चाहूंगा, जहां तक उनकी भावना हमारे कानून में स्थान पा चुकी है; लेकिन मैं उनसे फिर से शुरू करने के लिए विनती करता हूं कि इस बात का ध्यान रखते हुए हिसाब करें कि- जो नहीं देखा जाता है उसे जो देखा जाता है, के साथ रखकर। पाठकों को यह जरूर याद रखना चाहिए कि उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए मेरे द्वारा प्रस्तुत इस छोटे-से दृश्य में केवल दो नहीं बल्कि संबंधित तीन व्यक्ति हैं। उनमें से एक जेम्स बी. हैं जो उपभोक्ता का प्रतिनिधित्व करते हैं, विनाश की घटना से आनंद लेने वाले उन दो में से वे कम हो जाते हैं। हमें ग्लेज़ियर नामक निर्माता दिखाई देता है, दुर्घटना के कारण जिसके व्यापार को फायदा मिला। तीसरा जूता बनाने वाला (या कोई अन्य व्यापारी) जिसका उद्योग इसी घटना से प्रभावित हुआ। यही तीसरा व्यक्ति है जिसे हमेशा परदे में रखा जाता है, जो ‘देखा नहीं जाता है– का प्रतिनिधित्व करता है जो समस्या का आवश्यक अंग है। यही है वह, जो हमें बताता है कि हमारा विनाश के कृत्य में लाभ देखने के बारे में सोचना कितना बेतुका है। यही वह है, जो जल्द ही हमें यह भी सिखाएगा कि प्रतिबंध में लाभ देखना भी कम बेतुका नहीं, जोकि, अंततः आंशिक विनाश के अलावा कुछ नहीं है। इसलिए, यदि आप इसके पक्ष में प्रस्तुत उन सभी तर्कों की जड़ पर जाएंगे, तो आप पाएंगे कि इन बेहूदी बातों का यह अर्थ होगा- ग्लेज़ियर का क्या होगा,  अगर किसी ने कभी खिड़कियां नहीं तोड़ीं तो?

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अगले ब्लॉग में आप पढ़ेंगे- टैक्स (कर)