नागरिकों से कर वसूल करने के बदले में उतनी ही कीमत की सुविधाएं न देने पर फ्रेडरिक बास्टिएट कहते थे कि यह चोर को पैसे देने की तरह है। यहां करदाता को होनेवाला नुकसान नहीं देखा जाता है।
क्या आपने कभी यह सुना है- “कर सर्वश्रेष्ठ निवेश हैं। यह कितने सारे परिवारों का निर्वाह करते हैं, और इस पर भी गौर करें कि यह उद्योगों को कैसे बढ़ावा देते हैं; यह एक अटूट धारा है, यह अपने आप में जीवन ही है।”
इस मत का विरोध करने के लिए, मुझे अपना खंडन दोहराना होगा। राजनीतिक अर्थशास्त्र अच्छी तरह से जानता है कि इसके तर्क इतने दिलचस्प नहीं हैं कि कोई उनके लिए कहे कि- कृपया दोहराएं। इसलिए, राजनीतिक अर्थशास्त्र ने अपने स्वयं के उपयोग के लिए कहावतों को बदल दिया है, अब इस बात से आश्वस्त है कि उसके मुंह से- ‘दोहराव सिखाता है’ निकलेगा।
अधिकारियों को जो फायदा मिलता है, वह है- जो देखा जाता है। इससे कर भरने वाले को जो लाभ मिलता है वह अभी भी- देखा जाता है। यह सभी की आंखों को चुंधिया देता है।
लेकिन करदाता जिन नुकसानदेह बातों से बचना चाहता है- वे नहीं देखी जाती हैं। और इनसे करदाताओं को जो नुकसान होता है, वह अभी देखी नहीं जाती है, हालांकि यह सब अपने आप स्पष्ट होना चाहिए।
जब कोई अधिकारी अपनी सुविधा के लिए अतिरिक्त सौ सोस (तत्कालीन फ्रेंच मुद्रा) खर्च करता है, तो इसका मतलब है कि करदाता अपने काम के लिए सौ सोस कम खर्च कर पाता है। लेकिन अधिकारी द्वारा खर्च किया गया- देखा जाता है, क्योंकि यह किया जाता है, जबकि करदाता नहीं देखा जाता है। यह बड़े अफसोस की बात है कि उसे खर्च करने से वंचित कर दिया गया है।
आप देश की तुलना जमीन के एक टुकड़े से और कर की तुलना उपजाऊ बनाने वाली बारिश से कर सकते हैं। लेकिन आपको खुद से यह भी पूछना चाहिए कि इस बारिश के स्रोत कहां हैं और क्या यह कर नहीं है जो जमीन से नमी को सोख कर इसे और सुखा रहा है?
इसके अलावा, आपको खुद से यह भी पूछना चाहिए कि क्या जमीन को बारिश से यह बहुमूल्य पानी उतना ही मिल पा रहा है या कहीं उससे ज्यादा वाष्पीकरण में उड़ तो नहीं जा रहा है?
एक बात तो तय है, जब जेम्स बी. कर-संग्राहक को 100 सोस देता है तो बदले में उसे कुछ भी नहीं मिलता। इसके बाद जब कोई अधिकारी इस 100 सोस को खर्च करते हुए जेम्स बी. को कुछ देता है तो यह अनाज की कीमत या मेहनताना होता है। इसका अंतिम परिणाम जेम्स बी. को पांच फ्रैंक का नुकसान है जो उसने कर के रूप में भरा था।
यह सही है कि हमेशा, लगभग हर बार, सरकारी अधिकारी जेम्स बी. के साथ ऐसा ही व्यवहार करता है। इस मामले में दोनों ही पक्षों को कोई नुकसान नहीं है, यह तो सौदे के तौर पर विनिमय है। इसलिए, मेरे तर्क उपयोगी अधिकारियों पर लागू नहीं होते हैं। मैं बस इतना कहता हूं- यदि आप एक कार्यालय बनाना चाहते हैं, तो इसकी उपयोगिता साबित करें। जेम्स बी. को साबित करके दिखाएं कि उसे जो सेवाएं दी जा रही हैं, वह उससे वसूली जा रही कीमत के बराबर हैं। लेकिन इस वास्तविक उपयोगिता के अलावा, ऐसा तर्क न दें जो अधिकारी, उसके परिवार और उसे सामान की आपूर्ति करने वालों को होने वाले फायदों को गिनाता हो। यह भी दावा न करें कि यह श्रम को प्रोत्साहित करता है।
जब जेम्स बी. एक सरकारी अधिकारी को वास्तव में उपयोगी सेवा के लिए सौ पेंस देता है, तो यह ठीक वैसा ही है जब वह किसी जूतेवाले को एक जोड़ी जूते के लिए 100 सोस दे रहा हो।
लेकिन जब जेम्स बी. किसी सरकारी अधिकारी को बिना किसी सेवा के लिए मगर परेशानी के कारण 100 सोस देता है तो यह जैसे किसी चोर को पैसे देने की तरह ही है। यह कहना बेमानी होगा कि वह सरकारी अधिकारी इस पैसे का उपयोग हमारे राष्ट्रीय उद्योग के भले के लिए करेगा या यह कहें जैसा चोर करेगा। जेम्स बी. का योगदान इससे भी ज्यादा होता अगर कानूनी या गैरकानूनी परजीवी उसके रास्ते में न आया होता।
इसलिए अब हम किसी बात को ‘जो देखा जाता है’- से आंकने के बजाय ‘जो देखा नहीं जाता है’- से आंकने की आदत डाल लें।
पिछले साल मैं वित्त कमेटी में था क्योंकि संविधान-सभा (कांस्टिट्यूएंट असेंबली) में विपक्ष के सदस्यों को नियमानुसार सभी आयोगों से निकाला नहीं गया। इस मामले में संविधान के निर्माताओं ने काफी समझदारी से काम लिया था। हमने एम. थियर्स [एडॉल्फ थियर्स(1797-1877), फ्रांसीसी राजनयिक और प्रख्यात इतिहासकार। अपने लंबे करियर के दौरान वे डेपुटी और प्रधानमंत्री (1836 -1840) भी रहे। उनके योगदान को देखते हुए अंततः उन्हें 1871 में थर्ड रिपब्लिक का प्रेसीडेंट बनने का मौका भी मिला] को यह कहते सुना, “मैंने अपनी पूरी उम्र लेजिटिमिस्ट पार्टी और लेरिकल पार्टी के लोगों के साथ झगड़ते हुए गुजारी है। एक समान खतरे से लड़ते हुए हमने कई बार दिल खोलकर बात भी की और मैंने पाया कि वे दैत्यों की तरह नहीं थे, जैसा कि मैं सोचता था।”
हां, उन पार्टियों में अविश्वास और नफरत चरम तक पहुंच जाती है जो पार्टियां कभी आपस में मेलजोल नहीं रखतीं। अगर बहुमत वाली पार्टी विपक्ष के कुछ सदस्यों को विभिन्न आयोगों में स्थान दे तो शायद यह देखने को मिले कि दोनों को इस बात का एहसास हो जाए कि उनके विचारों में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है। खैर, पिछले साल मैं वित्त समिति में था। हर बार जब हमारा एक साथी गणराज्य के राष्ट्रपति, मंत्रियों और राजदूतों के वेतन को सीमित करने की बात कहता तो उसे उत्तर दिया जाताः
“सेवा के अच्छे होने के लिए कुछ कार्यालयों की प्रतिष्ठा और गरिमा को बनाए रखना इस पद के लिए योग्य पुरुषों को आकर्षित करने के रूप में यह जरूरी है। अनिगनत अभागे लोग मदद के लिए राष्ट्रपति से गुहार लगाते हैं और यह वाकई राष्ट्रपति के लिए दुखदाई होगा अगर उन्हें हर बार लोगों को मदद से इनकार करना पड़े। मंत्रियों और राजनयिकों के आस-पास थोड़ा बहुत ताम-झाम रखना तो संवैधानिक सरकार के तंत्र का ही हिस्सा है।”
हालांकि इस तरह के तर्क विवाद का विषय हो सकते हैं, यकीनन इन पर गहराई से जांच-परख की जानी चाहिए। वे सार्वजनिक हितों से संबंधित हैं, चाहे सही-सही अनुमान लगाया गया हो या नहीं। और जहां तक मेरा संबंध है, मेरे मन में उनके लिए अधिक सम्मान है क्योंकि हमारे (वित्त समिति) भी कई निर्णय अनर्थकारी रहे हैं और आज यही लोग कंजूसी या जलन की भावना दिखा रहे हैं।
लेकिन एक अर्थशास्त्री के तौर पर मेरे ज़मीर को जिस बात से सबसे ज्यादा धक्का लगता है या अपने देश की बौद्धिकता को लेकर मेरा सिर शर्म से झुक जाता है जब वो एक के बाद एक तर्क (जिससे वे कभी नहीं चूकते) देते चले जाते हैं:-
“यह सरकारी अधिकारियों की विलासिता के अलावा कला, उद्योग और रोजगार को भी बढ़ावा देता है। राष्ट्रप्रमुख या उनके मंत्रियों के भोज-आयोजनों के बिना सामाजिक निकायों में प्राणों का संचार नहीं हो सकता। उनके वेतन कम करने का मतलब होगा पेरिस के उद्योग को भूखा मारना और जिसका असर पूरे देश पर पड़ेगा।”
मैं आपसे विनती करता हूं, सज्जनो, कम-से-कम गणित का तो सम्मान करो और फ्रांस की नेशनल असेंबली के सामने ऐसा तो मत कहो! कदाचित यह शर्म की बात होगी अगर वह आपके साथ इस बात पर सहमत होता है कि कोई राशि जोड़ने से एक अलग योग आएगा भले ही खाने में इसे नीचे से ऊपर तक या ऊपर से नीचे तक जोड़ा गया हो।
मान लीजिए कि मैंने 100 सोस देकर अपने खेत में खुदाई के लिए एक मशीन का इंतजाम कर लिया। जैसे ही मैं यह इंतजाम करता हूं तभी कर-संग्राहक आता है और मुझसे 100 सोस ले लेता है और उसे आंतरिक मंत्री के पास भेजता है। इधर मेरा सौदा रद्द हो जाता है लेकिन उधर मंत्री के खाने की थाली में एक व्यंजन और बढ़ जाएगा। आप किस आधार पर यह कहने की हिम्मत कर सकते हैं कि यह अधिकारिक खर्च राष्ट्रीय उद्योग को लाभ पहुंचाएगा? क्या आप यह नहीं देखते कि यह श्रम करने और उससे मिलने वाली संतुष्टि से एकदम उल्टा है? यह सच है कि एक मंत्री के खाने की मेज पकवानों से अच्छी तरह भर गई लेकिन यह भी कटु सत्य है कि एक किसान का खेत बिना खुदाई के रह गया। पेरिस के एक बावर्ची (भठियारा) की जेब में 100 सोस आ गए, लेकिन मुझे यकीन है कि खुदाई करने वाले मजदूर को पांच फ्रेंक कमाने नहीं दिया गया। मैं केवल इतना ही कह सकता हूं कि सरकारी आदमी और बावर्ची (भठियारा) दोनों संतुष्ट हैं- जो देखा जाता है लेकिन बिना खुदा खेत और खुदाई करने वाला; जिसे काम नहीं मिला- देखा नहीं जाता। हे भगवान! राजनीतिक अर्थशास्त्र में दो और दो चार होते हैं, यह बताने के लिए भी कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं। और अगर आप ऐसा करने में कामयाब हो जाते हैं तो लोग चीखने लगते हैं, ‘यह बात कितनी मामूली और उबाऊ है।’ फिर वो ऐसे वोट करते हैं मानो आपने कभी कुछ भी सिद्ध नहीं किया।